समर्पण और इंसानियत का प्रतीक | Xafar Space
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डॉक्टर आशीष की कहानी: समर्पण और इंसानियत का प्रतीक
डॉ. आशीष एक छोटे से शहर के सरकारी अस्पताल में कार्यरत थे। उनकी पहचान एक कुशल और दयालु डॉक्टर के रूप में थी, जो हर मरीज़ की समस्या को समझने और उसे ठीक करने के लिए अपना सब कुछ लगा देते थे। उनके लिए मरीज सिर्फ एक केस नहीं बल्कि एक इंसान होता था, जिसकी जिंदगी संवारना उनका धर्म था।
एक दिन, अस्पताल में एक बेहद गंभीर मरीज को लाया गया। वह एक गरीब मजदूर था, जिसका परिवार इलाज का खर्च उठाने में असमर्थ था। मरीज की हालत बहुत खराब थी और उसे तत्काल सर्जरी की जरूरत थी। अस्पताल में सर्जरी के लिए आवश्यक उपकरण और दवाओं की कमी थी, और वहां के कर्मचारी यह कहकर पीछे हट गए कि बिना पर्याप्त संसाधनों के सर्जरी असंभव है।
लेकिन डॉ. आशीष ने हार मानने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा, "अगर हम सब अपने हिस्से की ज़िम्मेदारी निभाएं और थोड़ी सी कोशिश करें, तो हम इस आदमी की जान बचा सकते हैं।"
डॉ. आशीष ने अपनी बचत के पैसे निकालकर ज़रूरी दवाएं और उपकरण खरीदे। उन्होंने अस्पताल के अन्य कर्मचारियों को भी प्रेरित किया और सभी ने मिलकर उस मजदूर की सर्जरी की। सर्जरी सफल रही, और वह मजदूर कुछ दिनों बाद पूरी तरह से स्वस्थ हो गया।
जब वह मजदूर ठीक होकर अपने पैरों पर खड़ा हुआ, तो उसकी आंखों में आंसू थे। उसने डॉ. आशीष के पैर छूने की कोशिश की, लेकिन डॉक्टर ने उसे उठाकर गले से लगा लिया और कहा, "मेरा धर्म तो बस अपने कर्तव्य का पालन करना है।"
यह कहानी हमें दिखाती है कि जब इंसानियत, समर्पण और सेवा का भाव एक साथ मिल जाते हैं, तो किसी भी मुश्किल का सामना किया जा सकता है। डॉ. आशीष जैसे लोग हमें यह सिखाते हैं कि सच्ची सेवा और समर्पण से न सिर्फ हम किसी की जिंदगी बचा सकते हैं, बल्कि उसे एक नई शुरुआत भी दे सकते हैं।
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